Friday, December 3, 2021

हवन मंत्र

 देवयज्ञः

गायत्री मंत्र

ओ३म् भूर्भुव स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।। 

तने हमें उत्पन्न किया पालन कर रहा है तु तुझसे ही पाते प्राण हम दुःखियो के कष्ट हरता है तू। तेरा महान तेज है छाया हुआ सभी स्थान सृष्टि की वस्तु वस्तु में तू हो रहा है विद्यमान ।
तेरा ही धरते ध्यान हम मांगते तेरी दया ईश्वर हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चला। दाता हमारी बुद्धि को आर्य मार्ग पर चला।
 

आचमन मंत्र

ओ३म् अमृतो पस्त रण मसि स्वाहा ।1।
ओ३म् अमृता पिधान मसि स्वाहा ।2। 
ओ३म् सत्यं यशः श्रीर् मयी श्रीः श्रयतां स्वाहा ।3।

अंगस्पर्श मंत्र

ओ३म् वाड्.म आस्येऽस्तु ।1।
ओ३म् नसोर मे प्राणोऽस्तु ।2।
ओ३म् अक्ष्णोर् मे चक्षुरस्तु ।3।
ओ३म् कर्णयोर् मे श्रोत्रमस्तु ।4 ।
ओ३म् बाहवोर् मे बलमस्तु ।5।
ओ३म् ऊर्वोर म ओजोऽस्तु ।6।
ओ३म् अरिष्टानि मेऽङ्गानि तनुस तन्वा मे सह सन्तु ।7।

यथा ईश्वरस्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र

ओ३म् विश्वानि देव सवितर दुरितानि परासुत । सद् भद्रं तन्न आसुव ।1।
ओ३म् हिरण्य गर्भः सम वर्त ताम्रे भूतस्य जातः तिरेक आसित्। स दाधार पृथ्विी द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।2।

ओ३म् य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा । यस्य छाया अमृतं यस्य मृत्यु कस्मै देवाय हविषा विधेम  3

ओ३म् यः प्राणतो निमिषतो महित्वेक इद राजा जगतो बभूव य इसे अस्य द्विपदश् चतुष्पदः कस्मै देवाय हविष विधेम ।4।

ओ३म् येन द्यैरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्व स्तमिसं येन नाकः । यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम ।5। 

ओ३म् प्रजापते न त्वदे ता न्य न्यो विश्वा जातानि परिता बभूव यत् का मास्ते जुहुमस् तन्नो अस्तु वयं स्थानपतयो रयीणाम् ।6।

ओ३म् स नो बन्धुर् जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा यत्र देवा अमृत मान शानास तृतीये धान् नध्यै रयन्त।7।

ओ३म् अग्ने नय सुपथा राये असमान विश्वानि देव वयुनानि विद्वान युयो व्यस् मज् जुहुराण मेनो भूयिष्ठवं ते न उक्तिं विधेम ।8।

 इति ईश्वरस्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र

  अग्नि प्रज्वलन मंत्र

ओ३म् भूर्भुवः स्वः । ओ३म् भूर्भुवः स्वर द्यौरिव भूम्ना पृथिवीय वरिम्णा तस्यास् ते पृथिवि देवयजनि पृष्ठे अग्निअग्निमन्नादमन्ना द्यायादधे ।।

 ओ३म् उद बुद्ध्य स्वाग्ने प्रति जागृहि त्व मिष्टा मूर्ते सं सृजेधा मयं च अस्मिन स धस्थे अध्यु तरस्मिन् विश्वे देवा यजना नश् च सीदत ।।

समिधा मंत्र 

ओ३म् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस् ते ने ध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान प्रजया पशु भिर ब्रह्मवर्चसे नान्ना द्येन समेधय स्वाहा।1। 

इदमग्नये जातवेदसे इदन्न मम ।।

 ओ३म् समिधाग्निं दुवस्त घृतैर् बोधय ता तिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहोतन। ओ३म् सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन अग्नये जातवेदसे स्वहा ।2। 

इदमग्नये जातवेदसे इदन्न मम ।।

 ओ३म् तन्तवा समिद् भिरङ्,गिरो घृतेन वर्धयामसि बृहच्छोचा यविष्ठ्य स्वाहा ।3। 

इदमग्नये अड्. गिरसे इदन्न मम ।।

पंच घृत आहुति मंत्र

 ओ३म् अयन्त इष्म आत्मा जातवेदस् ते ने ध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्षय चास्मान प्रजया पशु भिर ब्रह्मवर्चसे नान् द्येन समेधय स्वाहा। दमग्नये जातवेदसे इदन्न मम ।। 

जल प्रसिंचन

ओ३म् अदिते अनुमन्य स्व।1। 
ओ३म् अनुमत अनुमन्य स्व ।2। 
ओ३म् सरस्वत्य अनुमन्य स्व ।3।
ओ३म् देव सवितः प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय। दिव्यो गन्धर्व केतपूः केतन नः  वाचस्पतिर वाचं नः स्वदतु ।4। 

आहुति मंत्र

ओ३म् अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये इदन्न मम ।1। 
ओ३म् सोमाय स्वापुनातुहा । इदं सोमाय इदन्न मम।2। 
ओ३म् प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदन्न मम ।3। 
ओ३म् इन्द्राय स्वाहा। इदमिन्द्राय इदन्न मम ।4। 

ओ३म् सूर्यो ज्योतिर् ज्योतिः सूर्यः स्वाहा ।1। 
ओ३म् सूर्यो वर्चो ज्योतिर् वर्चः स्वाहा ।2। 
ओ३म् ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा।3। 
ओ३म् सजूर देवेन सवित्रा सजू रूष सेन्द्र वत्या जुषाणः सूर्यो बेतु स्वाहा।4।

ओ३म् भूरग्नये प्रणाय स्वाहा। इदमग्नये प्रणाय इदन्न मग ।1। ओ३म् भुवर्वायवे अपानाय स्वाहा इदं वायवे अपानाय इदन्न नमः।2। 
ओ३म् स्वरा दित्याय व्यनाय स्वाहा इदमा दित्याय व्यनाय इदन्न मम ।3। 
ओ३म् भूर्भुवः स्वः अग्नि वाय् वा दितेभ्यः प्राणा पान व्यानेभ्यः स्वाहा । इदमग्नि वायु वा दितेभ्यः प्राणा पान व्यानेभ्यः इदन्न मम ।4।
 ओ३म् आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरों स्वाहा ।1।
ओ३म् यां मेघां देवगणाः पितरश्चोपासते तया मा मद्य मेघयाऽग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ।2।

ओ३म् विश्वानि देव सवितर् दुरितानि परासुव सद् भद्रं तन्न आसुव ।।
 ओ३म् अग्ने नय सुपथा राये असमान विश्वानि देव वयुनानि विद्वान युयो ध्यस मज जुहुराण मेनो भूयिष्ठां ते नमः उक्तिं विधेम ।।

ओ३म् भूर्भुव स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। 
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ।।

प्रसाद आहुति मंत्र

 ओ३म् यदस्य कर्मणो अत्य रीरिथं यद् वा न्यू नमि हाकरण अग्निष् टत् स्विष्ट कूद विद्यात् सर्व स्विष्टं सुहुतं करोतु मे। अग्नये स्विष्ट कृते सुहुतहुते सर्व प्रायश्चित्ता हुतीनां कामाना समयित्रे सर्वान्नः कमान्तु समर्द्धय स्वाहा। इदं अग्नये स्विष्ट कृते इदन्न मम ।।

ओ३म् .................   स्वाह।। इद प्रजापतय इदन्न मम।।

पूर्णाहुति

ओ३म् सर्व वै पूर्ण स्वाहा।1।
 ओ३म् सर्व वै पूर्ण स्वाहा।2।
ओ३म् सर्वं वै पूर्णं स्वाहा।3।

यज्ञ शेष


ओ३म् तेजोऽसि तेजो मयि धेही।
ओ३म् बलमसि बल मयि धेही।
ओ३म् ओजोऽसि ओजो मयि धेही।
ओ३म् मनयोऽसि मन मयि धेही।
ओ३म् वीर्यमसि वीर्य मयि धेही।
ओ३म् सोहोऽसि सोहो मयि धेही।

यज्ञाचना

 यज्ञरूप प्रभो! हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए। छोड देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए।
वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें। हर्ष में हो मग्न सारे शोक सागर तरें ।। 
श्वमेघादिक रचायें यज्ञ पर उपकार को धर्म मर्यादा चलाकर लाभ संसार को ।।
नित्य श्रद्धा भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें। रोग पीडित विश्व के सन्ताप सब हरते रहे।।
भावना मिट जाए मन से पाप अत्याचार की। कामनाएँ पूर्ण होवें यज्ञ से नर नार की।। 
लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए। वायू जल सर्वत्र हो शुभ गधे को धारण किए।।
 स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो। इन्न मम का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो।। 
हाथ जोड झुकाय मस्तक वन्दना हम कर रहे। नाथ रूप करुणा आपकी सब पर रहे।।
यज्ञरूप प्रमो! हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए।।
प्रभु मानसिक बल दीजिए।।
प्रभु आत्मिकीजिए।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। 
सर्वे मद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःखभाग्भवेत् ।। 
सब का भला करो भगवान, सब पर दया करो भगवान सब पर कृपा करो भगवान, सब का सब विधि हो कल्याण।।

हे ईश सब सुखी हो कोई न हो दुखारी सप हो निरोग भगवन धनधान्य के भण्डारी ।। 
सब भद्र भाव देखे सन्मार्ग के पथिक हो। दुखिया न कोई होदे सृष्टि में प्राण धारी ।। 
हे ईश सब सुखी हो कोई न हो दुखारी सप हो निरोग भगवन धनधान्य के भण्डारी ।।

शांति पाठ


ओ३म् यो शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिराप शान्तिरोषध शान्ति वनस्पतयः शान्तिः विश्वदेवाः शान्तिः ब्रहा शान्तिः सर्व शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।। ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः ओ३म् ।।

जय घोष

जो बोले सो अभय -
वैदिक धर्म की जय
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की - जय
योगीराज श्री कृष्ण की - जय
ऋषिवर दयानंद की - जय
धर्म पर मिटने वालों की - जय
देश पर बलिदान होने वालों की - जय
भारत माता की - जय
गौ माता की - जय
वैदिक ध्वनि - ओ३म्



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