Thursday, September 10, 2020

अवतार


 अवतार

                    ऐसा माना जाता है कि दुष्टों, पापियों का नाश करने व धर्मात्माओं की रक्षा करने हेतु ईश्वर, मनुष्य या अन्य जीव जैसे मछली, शूकर, कछुआ आदि के रूप में जन्म लेते हैं। हमारा विनम्र निवेदन है कि यह असत्य मान्यताएं हैं। वेदादि शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि परमात्मा अकायम् (शरीर रहित), अजन्मा ( कभी जन्म न लेेेने वाला), अविनाशी (कभी विकार को न प्राप्त होने वाला), निराकार ( जिसका कोई आकार नहींं) है। आकार नहीं है तभी तो वह सर्वव्यापक है, साकार वस्तु कभी सर्वव्यापक नहीं हो सकती और इस प्रकार एकदेशीय होने से विशााल ब्रह्मांड की न तो रचना कर सकती है, न ही नियंत्रित कर सकती है। प्रभु तो सृष्टि के कण-कण में समाए हैंं। अगर ऐसा न हो तो वह असंख्य जीवों के कर्मोंं का साक्षी कैैसे हो? गीता मेेंं कहा हैै - 

 "वह परमात्मा सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।" 

मुण्डकोपनिषद (१/१/६) मेें कहा है - 

"वह (परमात्मा) अदृृश्य है, हाथ आदि से गृृृहीत नहीं हो सकता, वाणी, चक्षु और कान का वह विषय नहीं, वह हस्त पाद रहित, नित्य,व्यापक, सर्वगत, अत्यन्त सूक्ष्म, अविकारी,जगत्कारण है। धीर लोग उसके दर्शन करते हैं

                             निष्कर्षतः ईश्वर अवतार के रूप में एक दृश्य तथा सीमित शक्ति वाला कभी नहीं हो सकता और इसकी आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि वह सर्वशक्तिमान है उसे अपने कार्य मैं किसी अन्य की सहायता की अपेक्षा नहीं है।

    ऋग्वेद (१.५२.४) में कहा है - 

" वह अकेले ही संपूर्ण संसार का बिना किसी की सहायता के निर्माण करता है" 

तथा ऋग्वेद में यह भी कहा गया है - 

जिसके परमात्मा के आगे जो लोग तथा पृथ्वीलोक  झुकते हैं जिसके बल से पर्वत भी काम ते हैं जिसके वज्र रूपी दंड को कोई नहीं टाल सकता। 

                जिसके ईक्षणमात्र से भूस्खलन हो जाते हैंं, जल प्लावन हो जाते हैंं, महाप्रलय हो जााती है, जरा सोचेंं कि वह एक  दुष्टात्मा जन के विनाश हेतु उसके अवतार लेने की धारणा, क्या ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर अविश्वास करना नहीं है? स्वयं आदि शंकराचार्य ने भी ईश्वर के देहधारण करने की अवधारणा को असत्य माना है अतः विडंबना ही है कि उनके शिष्य यह असत्य शास्त्रीय मान्यताओं के प्रिय प्रिय के दे रहे हैं यह विचार करें  कि जो परमेश्वर निमिष  मात्र मेंं रावण, कंस, दुर्योधन आदि दुष्ष्टोंं की हृदय गति बन्द कर सकता था उसे अवतार लेकर, इन दुष्टों के खिलाफ राम-रावण युद्ध व महाभारत जैसे भयंकर युद्ध  छेड़कर, उन युध्दों में लाखों निरपराध मानवों की जान लेने का क्या प्रयोजन हो सकता है? 

                   रामायण और महाभारत के प्रक्षेप रहित भाग को पढ़िये। इन महापुरुषों के समकालीन इन्हें ईश्वर का अवतार नहीं मानते थे, यह धारणा बाद में विकसित हुई है। अतएव भगवान राम, भगवान कृष्ण तथा अन्य सभी ऋषि मुनि महान् आत्माऐं थीं। जिन्होंने ज्ञान की प्रचण्ड अग्नि में मनुष्य को बन्धन में बाँधने वाली समस्त वासनाओं, समस्त मानवीय दुर्बलताओं को भस्म कर डाला था और समस्त सांसारिक वैभव को ठोकर मारकर मानव मात्र के हितार्थ अपने जीवन को होम दिया था।

                  हमें चाहिए कि ऐसे महात्माओं के जीवन से शिक्षा ग्रहण कर, अपने जीवन को भी उसी पथ का अनुगामी बनाए। इसी में हमारा कल्याण है।

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