Saturday, January 16, 2021

कक्षा - आठवीं प्रश्न कुंंजी (मार्च 2018)

 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दें प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर देने पर एक अंक प्रदान किया जाएगा।

1 किसके जप से वाणी में पवित्रता आती है?
2 'पुनिता' शब्द का अर्थ लिखिए।
3 वरों का दाता भक्त किसे मान रहा है?
4 सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के कितने नामों की व्याख्या की गई है?
5 स्वामी दयानंद जी ने बच्चे का परम गुरु किसे माना है?
6 'राष्ट्रीय गीत' में माता किसे कहा गया है?
7 'अस्तेय' शब्द का अर्थ लिखिए।
8 डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एवं मैनेजमेंट सोसायटी की स्थापना कब हुई?
9 त्यागशील महानुभावों के शिरोमणि कौन थे?
10 समाज का आइना (दर्पण) क्या है?
11नियम (योग दर्शन के अनुसार) कितने हैं ?

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्य में दें। प्रत्येक प्रश्न का सटीक उत्तर देने पर दो अंक प्रदान किया जाएगा।
12 'ओ३म्' की महिमा लिखिए? (कोई दो)
13 स्वामी दयानंद के गुरू कौन थे? उन्हें सिद्धि कैसे प्राप्त हुई?
14 सुख व दुःख के मूल लिखिए?
15 भगवान की याद भुलाने का भक्त को क्या फल मिला?
16 हमारा व्यवहार समाज के अन्य लोगों से कैसा होना चाहिए?
17 ब्रहमचर्य और वानप्रस्थ आश्रम की आयु लिखिए।
18 डा. मेहरचंद महाजन कश्मीर के प्रधानमंत्री कब बने?
19 'सुहासिनी' और 'सुमधुरभाषिणी' शब्दों के अर्थ लिखिए।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार वाक्य में दें। प्रत्येक प्रश्न का सटीक उत्तर देने पर तीन अंक प्रदान किया जाएगा।
20 गायत्री मन्त्र लिखिए।
21 डी.ए.वी. गान के प्रथम पद्य को लिखिए।
22 गीता में वर्णित तपों के नाम लिखिए।
23 ज्ञानेन्द्रियाँ कितनी हैंं? नाम लिखिए।
24 आर्य समाज का दसवां नियम लिखिए।
25 स्वामी दयानंद के स्वराज्य के विषय में विचार लिखिए।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार-पांच वाक्य में दें। प्रत्येक प्रश्न का सटीक उत्तर देने पर पांच अंक प्रदान किया जाएगा।
26 बलि विशेषज्ञ क्यों किया जाता है इसकी विधि का उल्लेख कीजिए?
27  सत्य का क्या अभिप्राय है? मनुस्मृति और महाभारत में सत्य के विषय में क्या कहा गया है?
28 ब्रहमचर्य आश्रम क्यों महत्वपूर्ण है?
29 'डी.ए.वी. संचालन में आर्य नेताओं ने तीन गुण (विशेषताओं) पर विशेष ध्यान दिया।' उन्हें लिखकर स्पष्ट कीजिए?
30 मेहरचंद महाजन को इनके पिता ने धाय माँ को क्यों सौंप दिया था?

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छः-सात वाक्य में दें। प्रत्येक प्रश्न का सटीक उत्तर देने पर छः अंक प्रदान किया जाएगा।
31 संतोष नामक नियम की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए ?
अथवा
ईश्वर भक्ति आपके अपने कर्मों से कैसे होती है?
32 वर्ण व्यवस्था का आधुनिक स्वरूप लिखिए।
अथवा
समाज की गति व स्थिति से क्या अभिप्राय है? शुद्र वर्ण का समाज के उत्थान में क्या योगदान है?
33 विद्या और अविद्या से आप क्या समझते हैं? आर्य समाज ने अविद्या के नाश के लिए क्या किया है?
अथवा
आर्य समाज का सातवां तथा नौवांं नियम लिखिए ।
34 सत्यार्थ प्रकाश के पांचवें समुल्लास के विषय वस्तु लिखिए।
अथवा
स्वामी दयानंद जी द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए?
35 आर्य नेताओं ने डी.ए.वी. की स्थापना क्यों की? क्या डी.ए.वी. ने उस समय भारतीय संस्कृति के पोषण एवं समर्थन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
अथवा
शिक्षा जीवन में कैसे उपयोगी है?

उत्तर कुंजी
1 ओ३म् ।
2 पवित्र।
3 ईश्वर को।
4 सौ।
5 माता को।
6 भारत माता।
7 चोरी न करना।
8 1885 में।
9 महात्मा हंसराज।
10 शिक्षा।
11 पाँच।

12 i) वाणी में पवित्रता आती है।
ii) सभी शुभकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
iii) ओ३म् जगत का अनुपम आधार है।
13 गुरु विरजानंद, गायत्री के जप से।
14 संतोष सुख का और असंतोष दुःख का मूल है।
15 पाप कर्म कर बैठा और अनगिनत कष्ट उठाने पड़े।
16 प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य। (कोई दो)
17 जन्म से पच्चीस वर्ष पचास से पचहत्तर वर्ष तक।
18 18 सितम्बर 1947।
19 सुंदर हास वाली, मधुर बोली वाली।

20 ओ३म् भूः भुवः स्वाः। तत्सवितुर्वरेंयं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।
21 अविरल, निर्मल, सलिल, सदव, ज्ञानप्रदायिनी, ज्योतिर्मय।
22 शरीर का, वाणी का, मन का।
23 पाँच - कान, त्वचा, आंख, नासिका, रचना।
24 सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहें।
25 स्वामी जी के अनुसार कोई भी विदेशी राज्य चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो स्वदेशी राज्य के समान नहीं हो सकता। विदेशी राज्य में कोई सुखी नहीं रह सकता।

26 बलि वैश्य देव यज्ञ प्राणियों की कल्याण के लिए दान की भावना से किया जाता है। इसमें भोजन करने से पूर्व मीठा मिले हुए अन्न को सब प्राणियों के लिए आहुति देना जो विशाल संसार में रहते हैं। चींंटियों को आटा, चिड़ियों को चोगा, पानी आदि देकर सुखी बनाने का प्रयत्न करना।
27 जैसे कुछ है, जैसे हमने सुनना हो, जैसा देखा हो, वैसा कह देना, जैसा अनुभव किया हो, वैसा प्रगट करना सत्य कहलता है।
मनुस्मृति - सत्य बोलो, प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य मत बोलो।
महाभारत - सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं तथा झूठ से बढ़कर कोई पाप नहीं ।
28 ब्रह्मचर्य आश्रम जीवन रूपी भवन की नींव के समान है। इस काल में विद्यार्थी जो कुछ सीखता है वह जीवन भर उसके काम आता है। इसीलिए यह आश्रम बहुत महत्वपूर्ण है।
29 डी.ए.वी. संस्था के संस्थापक आर्य नेताओं ने शिक्षण संस्थाओं को चलाने के लिए तीन बातों की ओर विशेष ध्यान दिया :
आत्मनिर्भरता
स्वार्थ त्याग
मितव्ययता (कम खर्च करने करके ऊँचे लक्ष्य की प्राप्ति)
आत्मनिर्भर : वर्तमान में डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एवं मैनेजमेंट कमेटी देश की सबसे बड़ी गैर-सरकारी स्वावलम्बी शिक्षण संस्था है। अतः यह संस्था पूर्णतया निर्भर आत्मनिर्भर है।
स्वार्थ त्याग : डी.ए.वी. संस्था में जुड़े लोगों ने त्याग भावना कूट-कूट कर भरी है। स्वार्थ त्याग इस संस्था का आदर्श रहा है।आर्य जनों ने आजीवन सदस्य बनकर मात्र ₹75 मासिक या अवैतनिक कार्य करके इस संस्था की सेवा की।
मितव्ययता : मितव्ययता की दृष्टि से डी.ए.वी. संस्थाएँँ आदर्श मानी जाती है। जनता द्वारा श्रद्धापूर्वक दिए गए दान से आज भी बिना किसी फालतू खर्च के ये संस्थाएँँ अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में सक्षम है।
30 जब बालक मेहरचंद का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों को बुलाकर उसका भाग्य जानने का यत्न किया गया। परंतु ज्योतिषियों ने बालक को अशुभ घोषित कर दिया। इससे दुखी होकर पिता श्री बृजलाल ने इस बालक को एक राजपूतानी आया रंगटू को सौंप दिया।

31 संतोष का अर्थ आलस्य नहीं है अपितु अपने कर्तव्य को पूरे पुरुषार्थ से पूर्ण करना और उसका जो फल मिले उसी पर संतुष्ट रहना संतोष कहलाता है। आलस्य तथा तृष्णा का दास न बनना संतोष है। इच्छा जितनी घटेगी सुख उतना बढ़ेगा। इच्छा ऐसी आग है जो संतोष के जल के बिना बुझती ही नहीं है।
अथवा
ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है - अपने सब कर्मों को ईश्वराधीन मानकर उसकी सेवा में अर्पण कर देना। भाव यह है कि जो भी कर्म किए जाए, फलसहित उसको ईश्वर को अर्पण कर देना। ईश्वर प्रणिधान की भावना रखने वाला भक्त जो भी कर्म करेगा, उसे पूरी सावधानी से करेगा क्योंकि वह जानता है कि उसका सारा कर्म ईश्वर को अर्पण करने के लिए है।
32 आधुनिक भाषा में इसका नामकरण इस प्रकार किया गया है -
1 शिक्षक
2 रक्षक
3 पोषक
4 सेवक
कर्मचारियों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी, वर्ण व्यवस्था का ही आधुनिक रूप है। ये श्रेणियाँँ जन्म के आधार पर नहीं, गुण, कर्म, स्वभाव अर्थात् मेरिट के आधार पर बनती है। इसी प्रकार वर्ण व्यवस्था भी मेरिट के आधारित थी। 
अथवा
शुद्र समाज के पहले समाज की उन्नति व अवनति ही गति के परिचायक हैं। शूद्र समाज की गति देते हैं क्योंकि जैसे शरीर को पैर चलाते हैं वैसे ही समाज को शुद्र गति देता है। पैर व्यक्ति को पर्वतों पर भी चढ़ा सकते हैं और गड्ढों में भी गिरा सकते हैं। अतः समाज का उत्थान पतन पूर्णरूपेण शूद्र पर ही निर्भर करता है। शूद्र उपेक्षित नहीं है वरन् सम्मानित वर्ण है।
33 विद्या का अर्थ किसी वस्तु का यथार्थ अर्थात् ठीक-ठाक ज्ञान है। वास्तविकता के विपरीत ज्ञान को अविद्या कहते हैं, जैसे रस्सी को सांप समझना, झूठ को सच समझना, अपने को पराया समझना, यह अविद्या तथा अज्ञान है अंधविश्वास या किसी भी बात पर बिना सोचे समझे विश्वास कर लेना भी अविद्या है। आर्य समाज ने कुछ अंधविश्वासों जैसे - सती प्रथा, विधवा विवाह  न होना, छुआछूत और बाल विवाह आदि का को समाप्त करने के लिए बहुत प्रयास किया है।
अथवा
सातवां नियम - सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिए।
नौवाँ नियम - प्रत्येक को अपनी उन्नति में संतुष्ट न रहना चाहिए किंतु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
34 वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम के विषय में इस समुल्लास में विस्तार से वर्णन है। गृहस्थाश्रम के कर्तव्य पूर्ण करके पच्चास वर्ष में वानप्रस्थी हो जाना चाहिए। इसमें सत्य धर्म का पालन करते हुए भगवान की उपासना करनी चाहिए। पचहत्तर वर्ष की आयु होने पर संन्यास आश्रम में प्रवेश करना चाहिए। सच्चा सन्यासी केवल वही है जो स्वयं धर्म के मार्ग पर चलें और समाज को भी सत्य मार्ग पर चलाने की प्रेरणा दें।
अथवा
सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा रचित एक महान ग्रंथ है। उन्होंका सत्यार्थ प्रकाश की रचना का मुख्य प्रयोजन सत्य-सत्य के अर्थ का प्रकाश करना। उन्होंने विश्व सेअज्ञान, अधर्म, असत्य को मिटाने के उद्देश्य को समक्ष रखा। परंतु उनका मुख्य उद्देश्य दूसरों को चोट पहुंचाना नहीं था। वह तो सत्य और असत्य की विवेचना करने करके सबका सत्य और ज्ञान से परिचय कराना चाहते थे।
35 30 अक्टूबर 1883 स्वामी दयानंद जी के देहांत के बाद उनके आदर्शों को बनाए रखने के लिए एक विचार रखा गया, "स्वामी जी ने जीवन भर स्वदेश, मानव जाति और वैदिक धर्म की सेवा की है। इसीलिए हम उनके ऋणी है। इस ऋण को चुकाने के लिए उनके नाम से एक स्मारक स्थापित किया जाए।" अतः इसी उद्देश्य को सामने रखकर लाहौर में 1885 में दयानंद एंग्लो वैदिक (डी.ए.वी.) कॉलेज ट्रस्ट एवं मैनेजमेंट सोसायटी की स्थापना की गई। डी.ए.वी. ने वैदिक, लौकिक संस्कृत, भारतीय संस्कृति की शिक्षा, प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा छात्रों को देकर भारतीय संस्कृति को बढ़ाया।
अथवा
शिक्षा समाज का आईना है। शिक्षा जन-जागृति और समाज सेवा का संदेश देती है। हमारे जीवन मूल्यों की रक्षा करती है। देश की नैतिक, चारित्रिक, संस्कृतिक डोर को भी शक्ति से थामे रखती है। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

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