Monday, January 4, 2021

कक्षा - आठवीं प्रश्नकुंजी

1 वाणी पवित्र कैसे आती है?

2 वसुधा का अर्थ लिखें।

3 मनुष्य किस में स्वतंत्र है?

4 'सदय' शब्द का अर्थ बताएं।

5 योग के कितने अंग है?

6 आश्रम कितने हैं?

7 मनुष्य की औसत आयु कितनी मानी गई है?

8 आर्य समाज के कितने नियम है?

9 'प्रेम के प्रयोगी' का क्या अर्थ है?

10 डी.ए.वी. से महात्मा हंसराज का क्या संबंध है?

11 मेहरचंद महाजन के पिता का क्या नाम था?

12 आर्य समाज किस की भलाई चाहता है?

13 भक्तों के होश में आने का क्या उपाय है?

14 'सुंंजला' का अर्थ बताएं।

15 मेहरचंद महाजन की धाय मां का क्या नाम था?


16 वेद ज्ञान घर-घर भर जाने का क्या लाभ होगा?

17 देव यज्ञ का अर्थ बताएं।

18 अभिवादनशील को किन चार वस्तु की प्राप्ति होती है?

19 चार कर्म कौन से हैं?

20 धन की शुद्धि से क्या अभिप्राय है?

21 तप का क्या अभिप्राय है

22 द्विज कब बनते हैं?

23 ज्ञान पाने के लिए क्या जरूरी है?

24 वानप्रस्थी के चार कर्तव्य लिखें।

25 मेहरचंद महाजन ने कश्मीर के प्रधानमंत्री बनकर कौन से दो महत्वपूर्ण कार्य किए।


26 ओ३म की कोई तीन महिमा लिखें।

27 ओ३म नाम ईश्वर का निज नाम है। कैसे?

28 आर्य समाज का सातवां और नौवां नियम लिखें।

29 गीता के प्रथम श्लोक में क्या उपदेश दिया गया है?

30 शिक्षा का क्या अभिप्राय है?


31 गायत्री जप के समय कैसी भावना होनी चाहिए।

अथवा

गायत्री जप किस समय करना चाहिए? महात्मा गांधी का गायत्री जप के विषय में क्या कहना है?

32 संस्कृत का अध्ययन क्यों करना चाहिए?

अथवा

संस्कृत का महत्व बताइए।

33 गुरु गोविंद सिंह ने हिंदी के लिए क्या किया?

अथवा

महात्मा गांधी ने देश के आज़ाद होने पर बी.बी.सी. को संदेश प्रसारित करने के लिए क्यों मना कर दिया।

34 यम कितने हैं? उनके नाम लिखकर अर्थ बताइए।

अथवा

अस्तेय और अपरिग्रह में क्या संबंध है?

35 स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना क्यों की?

अथवा

एक अच्छे राजा के गुण बताइए।


उत्तर कुंजी


1 ओ३म् से।

2 धरती।

3 कर्म में।

4 सदा।

5 आठ।

6 चार।

7 100 वर्ष।

8 दस।

9 ईश्वर का भक्त।

10 त्याग का।

11 बृजलाल।

12 सबकी।

13 ज्ञान की प्राप्ति।

14 पवित्र जल वाली, सुंदर जल वाली।

15 माता रंगटू।


16 सुभग शांति मिलेगी और अविद्या का अंधकार मिट जाएगा।

17 अग्निहोत्री, विद्वानों का संग, सेवा, पवित्र द्विय गुणों का धारण, दान, विद्या की उन्नति करना देवयज्ञ है।

18 आयु, यश, बल, विद्या।

19 नित्य कर्म, नैमित्तिक कर्म, काम्य कर्म, निषिद्ध कर्म।

20 हमारी कमाई ईमानदारी की हो, ठगी, चोरी, लूटपाट शोषण की न हो। खून पसीने की हो।

21 जीवन में अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए धैर्य और प्रसन्नता से सुख-दु:ख, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, इनको सहन करना तप है। व्यक्ति को चाहिए कि वह कर्तव्य का पालन करता रहे - सुख आए या दुख, गर्मी हो या सर्दी, मान हो या अपमान, कष्ट-क्लेश हो या आराम, इन सब को प्रसन्नता से सहन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाए।

22 संस्कार और विद्या से।

23 तपस्य और साधना।

24 धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, विद्या धन दूसरों में बांटना, यज्ञ आदि से प्रभु की उपासना, योगाभ्यास।

25 भारत और कश्मीर को जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण करवाया रेडियो स्टेशन की स्थापना की।


26 i) वाणी में पवित्रता आती है।

ii) मनुष्य की सभी शुभकामनाएं पूर्ण होती हैं।

iii) यह जगत का अनुपम आधार है।

27 सारे शास्त्रों ने ओ३म् को ही ईश्वर का निज नाम बताया है। तांत्रिक मंत्र भी तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक उनके आदि में ओ३म का उच्चारण न हो। श्री गुरु नानक देव जी ने भी कहा है 

'एक ओंकार सतनाम'

 अर्थात् ओ३म् और ओंंकार का तात्पर्य पर एक ही है। 

उपनिषद में भी कहा गया है

ओंकार एवेंद सर्वम

अर्थात सब कुछ ओ३म् है।

अंतःकरण भी ओ३म् का नाद सुनाता है। महर्षि दयानंद ने भी कहा है 

'ओम ईश्वर का सर्वोत्तम नाम है।'

28 सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तन चाहिए।

प्रत्येक को केवल अपनी उन्नति में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए अपितु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।

29 गीता के प्रथम श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम्हारा अधिकार कर्म में है फल में नहीं। आप कर्मों के फल की वासना वाले मत बनो, आपकी प्रीति केवल कर्म करने से हो।

30 शिक्षा समाज का आईना है। शिक्षा जन-जागृति और समाज सेवा का संदेश देती है। हमारे जीवन मूल्यों की रक्षा करती है। देश की नैतिक, चारित्रिक, संस्कृतिक डोर को भी शक्ति से थामे रखती है। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।


31 गायत्री मंत्र का जप करते समय उपासक को अपने अंदर यह भाव रखनी चाहिए कि सर्वशक्तिमान, सत्यस्वरूप, शक्ति के आदि स्त्रोत आनंदमय भगवान के ध्यान से मुझे आनंद, ज्ञान, शक्ति, शांति, सत्य आदि की प्राप्ति हो रही है। और तेज के सामर्थ्य से मेरे अज्ञान , दुःख, रोग, भय, चिंता, शोक आदि दूर हो रहे हैं, ऐसी भावना से किया गया गायत्री जप अद्भुत, शक्ति, शांति, ज्योति और आनंद देने वाला होता है।

अथवा

गायत्री का जप प्रातः स्नान करने के पश्चात तथा रात्रि को सोने से पूर्व करना अधिक उपयोगी है। गांधीजी के अनुसार गायत्री मंत्र का स्थिरचित्त और शांत हृदय से किया गया जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का सामर्थ्य रखता है और आत्मोन्नति के लिए उपयोगी है।

32 संस्कृत जाने वालों को विश्वभर की, विशेषताः भारत की किसी भी भाषा को सीखने में, दूसरों की अपेक्षा कम समय लगता है। इसके व्याकरण और अनुवाद का शिक्षण बुद्धि को वह दिशा प्रदान करता है जिससे छात्र का गणित तथा विज्ञान के विषय में प्रवेश सुगम हो जाता है।

अथवा

हमारा प्राचीनतम साहित्य संस्कृत में लिखा गया है। संस्कृत भाषा देववाणी और सुरभारती भी कहलाती है। संसार की समस्त परिष्कृत भाषाओं में संस्कृत ही प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत बोलने और लिखने वालों ने ही संस्कृति और सभ्यता का निर्माण किया है। भारत की आधुनिक भाषाएं संस्कृत से ही निकली है।

33 गुरु गोविंद सिंह सारे देश की स्वतंत्रता एवं अखंडता का सपना संजोए हुए थे। इस निमित्त शिवाजी के पुत्र संभाजी से मिलने दक्षिण गए थे। गुरुजी ने खालसा पंथ में दीक्षित होने वाले अपने अनुयायियों को जो जय घोष प्रदान किया वह सारे देश के विचार से हिंदी में था और आज भी हिंदी में ही बोला जाता है

        " वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह"

गुरु जी का दशम ग्रंथ भी हिंदी में ही लिखा है।

अथवा

देश के आज़ाद होने पर बी.बी.सी. लंदन के अधिकारी गांधी जी से ऐसा संदेश लेने के लिए पहुंचे थे जिसे वे रेडियो पर सुना सके। उन दिनों तक बी.बी.सी. से हिंदी प्रसारण नहीं होते थे। इसीलिए गांधी जी ने संदेश देने से मना कर दिया और कहा कि दुनिया भूल जाए कि गांधी अंग्रेजी जानता है।

34 यम पाँच है -

1 अहिंसा - किसी प्राणी को मन, वचन, कर्म से दुःख न देना।

2 सत्य - सदा सच्चाई के मार्ग पर चलना, प्रिय तथा हितकारक सत्य बोलना।

3 अस्तेय - चोरी न करना।

4 ब्रह्मचर्य - परमात्मा में ध्यान रखना।

5 अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक जमा न करना।

अथवा

स्तेय का अर्थ चोरी करना है और अस्तेय का अर्थ चोरी न करना। दूसरों की वस्तु हमसे बिना पूछे या उसका मूल दिए बिना लेना अस्तेय है। अपरिग्रह का अर्थ चोरी अथवा गलत ढंग से धन का संग्रह न करना है। यदि हम सुख और शांति चाहते हैं तो हमें आवश्यक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना चाहिए। क्योंकि अनावश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए चोरी (स्तेय) आदि का सहारा लेना पड़ता है जोकि समाज के लिए दुःखदायी है। इसी प्रकार अस्तेय की भावना को मजबूत करने के लिए अपरिग्रह की भावना का होना आवश्यक है।

35 स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना का मुख्य प्रयोजन सत्य-सत्य के अर्थ का प्रकाश करना। उन्होंने विश्व सेअज्ञान, अधर्म, असत्य को मिटाने के उद्देश्य को समक्ष रखा। परंतु उनका मुख्य उद्देश्य दूसरों को चोट पहुंचाना नहीं था। वह तो सत्य और असत्य की विवेचना करने करके सबका सत्य और ज्ञान से परिचय कराना चाहते थे।

अथवा

राजा का जीवन आदर्श होना चाहिए। उसमें कोई भी बुराई या दुर्गुण नहीं होना चाहिए। राजा को प्रजा के साथ पूरा न्याय करना चाहिए तथा न्याय करते समय पक्षपात नहीं करना चाहिए। अपराधी को कड़े से कड़ा दंड मिलना चाहिए। राज, शासन और दंड तीनों एक साथ रहते हैं।

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