Thursday, May 7, 2020

कक्षा - छठी पाठ - 5

कक्षा - छठी

पाठ - 5
आर्य समाज के नियम (1-2)

प्रश्न 1-  आर्य समाज के पहले दो नियम लिखें।
उत्तर 1- क) सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सब का आदिमूल परमेश्वर है।
ख)  ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र और सृष्टि करता है उसी की उपासना करनी योग्य है।

प्रश्न 2-  आर्य समाज के दूसरे नियम के आधार पर ईश्वर की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर 2- आर्य समाज के दूसरे नियम में  ईश्वर की विशेषताएं बताते हुए कहा गया है कि ईश्वर सदा रहने वाला ज्ञानवान और आनंदमई है। ईश्वर  का कोई आकार नहीं है वह सबसे अधिक शक्तिशाली है। ईश्वर के अनंत रूप है और वह सब प्रकार की विकारों से रहित है। ईश्वर आदि काल से ही हैऔर अमर है। सृष्टि के हर कण में वही समाया हुआ है और सब का आधार है।
प्रश्न 3- ईश्वर निर्विकार है, इसका क्या अभिप्राय है?
उत्तर 3-  निर्विकार शब्द 2 शब्दों को मिलाकर बना है निर् +  विकार। निर्  का अर्थ है बिना, विकार का अर्थ है परिवर्तन अर्थात  सदा एक समान रहने वाला। परमात्मा सदा एक सा रहता है वह ना बढ़ता है या घटता है।  वह सब प्रकार के विकारों से परे है।
प्रश्न 4- 'उसी की उपासना करने योग्य है' इसका का आशय बताए।
उत्तर 4-  इस से आशय है कि हमें एक ही ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। जो ईश्वर निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वाधार, अजर, अमर, नित्य पवित्र, सृष्टिकर्ता आदि गुणों से पूर्ण है।
प्रश्न 5- 'आदिमूल' का अभिप्राय बताएं
उत्तर 5- आदिमूल से अभिप्राय है कि इस ब्रह्माण्ड में जो भी ज्ञान है उसका प्रथम और एकमात्र स्रोत से है। इस सृष्टि पर जो भी सच्चा ज्ञान, जो भी विद्यायें हैं, जो ज्ञान-बोध, आत्म-बोध है, इस सृष्टि में जो भी सत्य है, उन सबका स्रोत परम पिता परमेश्वर ही है।

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