Friday, May 8, 2020

कक्षा - आठवीं पाठ - 5

कक्षा - आठवीं

पाठ - 5
गायत्री मंत्र

प्रश्न 1-  गायत्री मंत्र लिखें।
उत्तर 1- ओ३म् भूः भुवः स्वाः। तत्सवितुर्वरेंयं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।
प्रश्न 2-  गायत्री मंत्र का अर्थ लिखें।
उत्तर 2- ओ३म् - ईश्वर का निज नाम।
भूः - प्राणों का प्राण।
भुवः - सब दुःखों को मिटाने वाला।
स्वाः - सब सुखों को देने वाला।
तत् - उसको हम।
सवितु - सूर्यादि में प्रकाश भरने वाला, जगत् की उत्पत्ति करने वाला।
र्वरेण्यमं - अपनाने योग्य।
भर्गो - सब क्लेश ओ को भस्म करने वाला, पवित्र, शुद्ध स्वरूप।
देवस्य - कामना करने योग्य।
धीमही - धारण करने योग्य।
धियो - बुद्धि को।
यो - जो।
नः - हमें
प्रचोदयात् - सन्मार्ग पर ले चलो।
प्रश्न 3-  गायत्री मंत्र की महिमा का वर्णन करें।
उत्तर 3- गायत्री मंत्र की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है," समस्त दुखों के  अपार सागर से पर करने  वाली गायत्री है। इसीलिए इसको पापनिवारणी, दुःख-हरनी, त्रिलोक तारनी कहते हैं।
प्रश्न 4- सविता शक्ति द्वारा मानवीय पुरुषार्थ के बारे में लिखिए।
उत्तर 4-  जिस प्रकार परमात्मा अपनी सविता शक्ति द्वारा सुप्त  प्रकृति को प्रेरणा करके सृष्टि को  रच देता है उसी प्रकार परमात्मा  को 'सविता' नाम से पुकारने वाले साधक का भी कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने आप को और दूसरों को प्रेरणा देकर अज्ञान की निंद्रा को दूर करे, और सब मनुष्यों को ईश्वर-भक्त, वेद-भक्त  तथा जनता-जनार्दन का सेवक बनने का यत्न करें।
प्रश्न 5- गायत्री मंत्र के जप की विधि समय तथा जब के स्थान को बताएं।
उत्तर 5- गायत्री का जप प्रातः स्नान करने के पश्चात तथा रात्रि को सोने से पूर्व करना अधिक उपयोगी है। जप का स्थान पवित्र एवं शांत होना चाहिए।
प्रश्न 6-  महात्मा गांधी के गायत्री के विषय में विचार लिखें।
उत्तर 6-  गांधीजी के अनुसार गायत्री मंत्र का स्थिरचित्त  और शांत हृदय से किया गया जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का सामर्थ्य रखता है और आत्मोन्नति के लिए उपयोगी है।
प्रश्न 7- स्वामी विरजानंद को और महात्मा आनंद स्वामी को प्राप्त हुए गायत्री जप के फल का उल्लेख कीजिए।
उत्तर 7-  स्वामी विरजानंद जी महाराज को गायत्री के जप से सिद्धि प्राप्त हुई थी और महात्मा आनंद स्वामी जब आठ या नौ वर्ष के थे तो मंदबुद्धि होने के कारण बड़े निराश रहा करते थे। वे अपने जीवन को बिल्कुल निरर्थक समझते थे। क्योंकि कोई भी उसे प्रसन्न नहीं रहता था। उनकी इस दयनीय अवस्था को सुनकर आर्य जगत् के प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी नित्यानंद जी ने उन्हें गायत्री मंत्र दिया और प्रातः होने से पूर्व इस मंत्र को अर्थ-ज्ञान और अनुकूल आचरण सहित जप करने का आदेश दिया। इसके परिणाम यह हुआ कि उनके जीवन की काया पलट गई। वे प्रतिदिन उन्नति करने लगे। मंत्र जप से उनकी  एकाग्रता  बढ़ने लगी, बुद्धि तीव्र होने लगी, मन पढ़ाई में लगने लगा, बुद्धि विषयों को समझने लगी, तो वे कक्षा में प्रथम आने लगे। युवावस्था में भी वे इस अर्थ-सहित गायत्री जप के प्रभाव से सदा आगे बढ़ते रहे।
प्रश्न 8 - गायत्री मंत्र का जप करते समय उपासक के मन में कैसी भावना होनी चाहिए।
उत्तर 8 - गायत्री मंत्र का जप करते समय उपासक को अपने अंदर यह भाव रखनी चाहिए कि सर्वशक्तिमान, सत्यस्वरूप, शक्ति के आदि स्त्रोत आनंदमय भगवान के ध्यान से मुझे आनंद, ज्ञान, शक्ति, शांति, सत्य आदि की प्राप्ति हो रही है। और तेज के सामर्थ्य से मेरे अज्ञान , दुःख, रोग, भय, चिंता, शोक आदि दूर हो रहे हैं, ऐसी भावना से किया गया गायत्री जप अद्भुत, शक्ति, शांति, ज्योति और आनंद देने वाला होता है।

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