Saturday, August 15, 2020

आर्य समाज के नियम


आर्य समाज के नियम

1 सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेश्वर है।

2 ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निरंकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, आनंद, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांंतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।


3 वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यो परम धर्म है।

4  सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।

5 सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार कर करना चाहिए।

6  संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।

7 सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिए।

8 अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए


9 प्रत्येक को अपनी उन्नति में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए, वरन् सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।

10 सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहें।




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