Monday, July 13, 2020

कक्षा - आठवीं पाठ - 8

कक्षा - आठवीं

पाठ - 8 
पंच महायज्ञ

प्रश्न 1- चार प्रकार के कर्म कौन से हैं उनके नाम और स्वरूप बताएं।
उत्तर 1- चार प्रकार के कर्म निम्नलिखित हैं।
1 नित्य कर्म
2 नैमित्तिक कर्म
3 काम्य कर्म
4 निषिद्ध कर्म
1 नित्य कर्म - प्रतिदिन किए जाने वाले कर्मों को नित्य कर्म कहते हैं।
2 नैमित्तिक कर्म - किसी निमित्त या कारण से किए जाने वाले कर्म अर्थात् पर्व, उत्सव, संस्कार आदि नैमित्तिक कर्म है।
3 काम्य कर्म - कामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले कर्म होता में कर्म कहते हैं।
4 निषिद्ध कर्म - अशुभ कर्मों को निषिद्घ कर्म कहते है
प्रश्न 2- पंच महायज्ञ कौन से हैं उनका संबंध किस प्रकार के कर्म से है?
उत्तर 2- पंच महायज्ञ निम्नलिखित है -
1 ब्रह्मयज्ञ 
2 देवयज्ञ
3 पितृ यज्ञ
4 अतिथि यज्ञ
5 बलिवैश्वदेव यज्ञ 
            इनका संबंध नित्य कर्म से है।
प्रश्न 3- ब्रह्म यज्ञ से क्या अभिप्राय है इससे किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर 3- ब्रह्मयज्ञ का अर्थ है संध्या।  प्रातः सायं  ठीक प्रकार स्नान करके आत्मा तथा परमात्मा का चिंतन करना, ध्यान में बैठ जाना और ध्यान मग्न होकर ईश्वर के ओ३म् अथवा किसी अन्य नाम का उसमें लीन होकर जप करना। ब्रह्म यज्ञ करने के लिए  स्नान करने के पश्चात संध्या करके गायत्री मंत्र का जप करके ईश्वर तथा परमात्मा का चिंतन करना चाहिए और यह सब ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पूर्व करना चाहिए तथा शाम को सूर्यास्त से पूर्व।
प्रश्न 4- देव यज्ञ की अग्नि के कितने रूप हो जाते हैं।
उत्तर 4- तीन।
प्रश्न 5- देव यज्ञ पर्यावरण से किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर 5- वेद मंत्रों के उच्चारण, अग्नि और आहुतियों का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। अग्निहोत्री में वृष्टि, वर्षा और जल की शुद्धि होकर वृष्टि द्वारा संसार को सुख प्राप्त होता है।
प्रश्न 6- अभिवादनशील को  किन चार वस्तुओं की प्राप्ति होती है?
उत्तर 6- आयु, विद्या, यश और बल।
प्रश्न 7- पितृ यज्ञ किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर 7- पितृ यज्ञ महायज्ञ में तीसरा है। इसका अर्थ है - माता-पिता सास-ससुर गुरुजन अन्य वृद्धजनों की सेवा करना। इस सेवा से आशीर्वाद मिलता है। आशीर्वाद से सुख मिलता है, उन्नति होती है।
प्रश्न 8- अतिथि यज्ञ और बलिवैश्वदेव देव यज्ञ की विधियों का उल्लेख करें।
उत्तर 8- अतिथि यज्ञ -  यदि कोई व्यक्ति बिन बताए, बिन बुलाए, बिना सूचना दिए, अपरिचित रूप से आपके घर आ जाता है तो उसका स्वागत करना सत्कार करना उसे खाने और पीने देना ही अतिथि यज्ञ है।

बलि वैश्वदेव यज्ञ - समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयास करना, दान देना।सबके लिए प्रार्थना करना, स्वयं भोजन करने से पूर्व यज्ञ की अग्नि में या रसोई की चूल्हे में नमकीन वस्तुओं को छोड़कर मीठे मिली वस्तुएं अन्न को उन सब प्राणियों के लिए आहुति देना जो इस विशाल संसार में रहते हैं। चींटियों को आटा चिड़ियों को चोदा पानी आदि लेकर सुखी बनाने का प्रयत्न भी इसी यज्ञ में के अंतर्गत आता है।

No comments:

Post a Comment