Thursday, November 19, 2020

कक्षा - आठवीं पाठ - 15

कक्षा - आठवीं

पाठ - 15
आर्य समाज के नियम

प्रश्न 1 - आर्य समाज के अंतिम चार नियम क्रमानुसार लिखिए।
उत्तर 1 - i) सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिए।
ii)  अविद्या का नाश और विद्या वृद्धि करनी चाहिए ।
iii)  प्रत्येक को अपनी उन्नति में संतुष्ट न रहना चाहिए किंतु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
iv)  सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहें।
प्रश्न 2 - सातवें नियम के अनुसार अन्य लोगों के साथ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर 2 - हमारा व्यवहार समाज के अन्य सभी लोगों के साथ प्रीति पूर्वक होना चाहिए। हमें सब के साथ प्यार से बोलना चाहिए। किसी के साथ कड़वा या कठोर व्यवहार नहीं करना चाहिए। प्रीतिपूर्वक होने के साथ-साथ धर्म के अनुसार भी होना चाहिए। धर्मानुसार व्यवहार करके ही हम शत्रु या नीच को रास्ते पर ला सकते हैं। हमारा व्यवहार यथायोग्य होना चाहिए अर्थात् सभी से एक समान व्यवहार नहीं हो सकता। हमारा व्यवहार काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि दूसरा व्यक्ति किस प्रकार का व्यक्ति है और हमारे साथ कैसा व्यवहार कर रहा है?
प्रश्न 3 - विद्या और अविद्या से आप क्या समझते हैं आर्य समाज ने अविद्या के नाश के लिए क्या किया?
उत्तर 3 - विद्या का अर्थ किसी वस्तु का यथार्थ अर्थात् ठीक-ठाक ज्ञान है। वास्तविकता के विपरीत ज्ञान को अविद्या कहते हैं, जैसे रस्सी को सांप समझना, झूठ को सच समझना, अपने को पराया समझना, यह अविद्या तथा अज्ञान है अंधविश्वास या किसी भी बात पर बिना सोचे समझे विश्वास कर लेना भी अविद्या है। आर्य समाज ने कुछ अंधविश्वासों जैसे - सती प्रथा, विधवा विवाह  न होना, छुआछूत और बाल विवाह आदि का को समाप्त करने के लिए बहुत प्रयास किया है।
प्रश्न 4 - अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों की उन्नति का ध्यान रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर 4 - अपनी की उन्नति में संतुष्ट न करें। हमें यह भी देखना चाहिए कि हमारे आसपास रहने वालों या कार्य करने वाले अन्य व्यक्तियों की भी समान रूप से उन्नति हो। दूसरे शब्दों में, यह भी कहा जा सकता है कि हमें कोई भी कार्य करने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि हमारी इस कार्य से हमारे आसपास रहने वाले अन्य लोगों पर इसका कोई गलत प्रभाव तो नहीं होगा। हमारे कार्यों से हमारे साथ-साथ अन्य लोगों की भी उन्नति होनी चाहिए। उन्नति का अर्थ है - शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और आत्मिक उन्नति। हमारा कर्तव्य कि हम इस बात का ध्यान रखें कि हमारे हमारा प्रत्येक कार्य हमारे तथा हमारे संपर्क में आने वाले सभी लोगों को शारीरिक, आर्थिक, आत्मिक, सामाजिक और धार्मिक उन्नति में सहायक हो बाधक नहीं। हमारी उन्नति समाज देश और मानव मात्र की उन्नति का अंग हो तभी संसार में सच्चा सुख होगा।
प्रश्न 5 - आर्य समाज का दसवां नियम सामाजिक व्यवस्था को दृढ़ करने में कैसे सहायक है?
उत्तर 5 - आर्य समाज का दसवां नियम सामाजिक व्यवस्था को दृढ़ करने में सहायक है। यह बात अग्रलिखित उदाहरण से स्पष्ट होती है - आप किसी हितकारी कार्य के लिए दान देना चाहते हैं, तो आप स्वतंत्र हैं जैसे किसी औषधालय, विद्यालय या अनाथालय जैसी संस्थाओं में दान देने के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है। परन्तु देशद्रोही को सहायता देने के लिए आप स्वतंत्र नहीं। यानी जिस कार्य को करने से दूसरों को हानि न हो, वहां आप स्वतंत्र हैं। परंतु हमारे जिस कार्य से समाज या राष्ट्र को हानि हो, वहां हम स्वतंत्र नहीं। इसलिए इस नियम का पूर्ण रुप से पालन करने पर सामाजिक व्यवस्था दृढ़ होगी।

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